कभी कभी वो रात और वो मंज़र याद आता है तो मेरा दिल दहल उठता है आखिर वो क्या था? कभी कभी वो रात और वो मंज़र याद आता है तो मेरा दिल दहल उठता है आखिर वो क्या था?
लेखक: कन्स्तान्तिन उशीन्स्की अनुवाद: आ. चारुमति रामदास लेखक: कन्स्तान्तिन उशीन्स्की अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
सुमेर ने ही रामजीत को मोदक का आदत डलवाया । सुमेर ने ही रामजीत को मोदक का आदत डलवाया ।